जनसंसद :एक कदम लोकसभा से जनसभा की ओर
दोस्तों मेरा ये लेख मेरे दोस्तों द्वारा अलवर जिले के सभी जनआंदोलनो के समायोजन के क्रियान्वन एवं महत्व को ध्यान में रखकर बनाये गए बैनर ''अलवर जन संसद'' की वर्तमान परिपेक्ष में उपयोगिता को दर्शाता है तथा लोकतंत्र को सुदृण बनाने के लिए जनसंसद के महत्त्व की ओर इंगित करता है !मेरा ये लेख पूरणतया मेरे दृस्टिकोण पर आधारित है !मेरे दृस्टि कोण से आप सहमत या असहमत हो सकते है ये पूरणतया आपकी अपनी स्वतंत्रता है !
भारत को १५ अगस्त १९४७ के बाद से एक लोकतान्त्रिक देश कहा गया ! भारत के संविधान में भारत के नागरिको को कुछ अधिकार दिए गए !उनमे से एक था मतदान का अधिकार !जिसके अंतर्गत भारतवासियों को अपने जन प्रतिनिधियों को चुनकर पांच वर्षों तक अपने लिए विधानसभा और लोकसभा को चुनने का अधिकार प्राप्त है !लेकिन क्या ये एक पर्याप्त वजह है भारत को एक लोकतान्त्रिक देश के रूप में पूर्णतया स्वीकार करने की !
अगर हम आजादी के बाद से अब तक के भारत के इतिहास पर नजर डालें और निष्पक्ष विश्लेषण करें तो ये बात और भी साफ़ हो जाती है की भारत में लोकतंत्र की स्थिति अत्यंत ही दयनिये है और निरंतर गिरावट की ओर है!
मेरी दृस्टि में अब्राहम लिंकिन के द्वारा दी गई ये परिभाषा लोकतंत्र की सही परिभाषा है,उनके अनुसार "जनता का ,जनता के लिए ,और जनता के द्वारा चलाया जाने वाला तंत्र ही लोकतंत्र है" ! अगर इस परिभाषा के अंनुरूप हम भारत की लोकतान्त्रिक व्यवस्था का आकलन करें तो स्तिथि और भी बदतर नज़र आती है !
अब प्रश्न ये उठता है की क्या वजह रही भारत में लोकतान्त्रिक व्यवस्था के हास की ! मेरी दृस्टि सबसे मूल कारण ये रहा कि १९४७ के बाद हम इस प्रकार से निश्चिन्त हो गए जैसे हमने सब कुछ हासिल कर लिया है !तथा बिना वास्तविक स्तिथि में गहराई से उतरे हमने भारत की संसदीय लोकतान्त्रिक प्रणाली को ही लोकतान्त्रिक व्यवस्था का चरम उत्कर्ष मानकर व्यवस्था के निरतर उत्थान के लिए आवश्यक सतत संघर्ष को विराम दे दिया ! हमारी इस गलत धारणा को सबल बनाने के लिए भारत की दलगत राजनीति ने भी , अपने हितों को साधने के लिए तथा भारत के नागरिको को प्रमादी बनाने के लिए, अपने पूरे प्रयास किये !
परन्तु वर्तमान परिपेक्ष में भारत की जनता इस बात को समझ रही है की संसदीय लोकतान्त्रिक कार्यप्रणाली काफी नहीं है उनकी समस्याओं के निराकरण के लिए तथा अगर उन्हें एक सुखी ,समृद्ध ,समस्याओं से रहित एवं खुशहाल जीवन जीना है तो उन्हें संसदीय लोकतांत्रिक व्यवस्था से ऊपर उठकर लोकतंत्र में अपनी सक्रिय भागीदारी को सुनिशित करना होगा एवं एक नयी व्यवस्था को जनम देना होगा !भारत के नागरिको को अपने स्वर्णिम भविष्य के निर्माण के लिए उठाना ही होगा एक कदम लोकसभा से जन सभा की ओर , स्वतंत्र करना होगा सत्ता को दलगत राजनीति के चुंगुल से , करना ही होगा निर्माण जनसंसद का !
""सड़के अगर खामोश हो जायेगी तो संसद आवारा हो जायेगी"" : राममनोहर लोहिया
written by
yash
अब प्रश्न ये उठता है की क्या वजह रही भारत में लोकतान्त्रिक व्यवस्था के हास की ! मेरी दृस्टि सबसे मूल कारण ये रहा कि १९४७ के बाद हम इस प्रकार से निश्चिन्त हो गए जैसे हमने सब कुछ हासिल कर लिया है !तथा बिना वास्तविक स्तिथि में गहराई से उतरे हमने भारत की संसदीय लोकतान्त्रिक प्रणाली को ही लोकतान्त्रिक व्यवस्था का चरम उत्कर्ष मानकर व्यवस्था के निरतर उत्थान के लिए आवश्यक सतत संघर्ष को विराम दे दिया ! हमारी इस गलत धारणा को सबल बनाने के लिए भारत की दलगत राजनीति ने भी , अपने हितों को साधने के लिए तथा भारत के नागरिको को प्रमादी बनाने के लिए, अपने पूरे प्रयास किये !
परन्तु वर्तमान परिपेक्ष में भारत की जनता इस बात को समझ रही है की संसदीय लोकतान्त्रिक कार्यप्रणाली काफी नहीं है उनकी समस्याओं के निराकरण के लिए तथा अगर उन्हें एक सुखी ,समृद्ध ,समस्याओं से रहित एवं खुशहाल जीवन जीना है तो उन्हें संसदीय लोकतांत्रिक व्यवस्था से ऊपर उठकर लोकतंत्र में अपनी सक्रिय भागीदारी को सुनिशित करना होगा एवं एक नयी व्यवस्था को जनम देना होगा !भारत के नागरिको को अपने स्वर्णिम भविष्य के निर्माण के लिए उठाना ही होगा एक कदम लोकसभा से जन सभा की ओर , स्वतंत्र करना होगा सत्ता को दलगत राजनीति के चुंगुल से , करना ही होगा निर्माण जनसंसद का !
""सड़के अगर खामोश हो जायेगी तो संसद आवारा हो जायेगी"" : राममनोहर लोहिया
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