
"अन्ना आंदोलन से लेकर स्वराज संवाद तक"" (एक सामान्य अन्ना आंदोलन के वॉलेंटियर का सारे घटनाक्रम पर नजरिया )
दोस्तों मेरा ये लेख अन्ना आंन्दोलन से लेकर आज तक के राजनैतिक घटनाक्रम की एक निष्पक्ष विवेचना है !इस लेख मैं मैंने अपने व्यक्तिगत अंनुभव के आधार पर जो कुछ भी सीखा उसे आपके साथ साझा करने का प्रत्यन किया है ! मेरे अनुभव के निष्कर्ष से आप सहमत या असहमत हो सकते हैं ये पूणतया आपकी अपनी स्वतंत्रता है !साथ ही इस आंदोलन की अंदरूनी राजनीति के प्रत्ति मेरा ज्ञान उतना ही है जितना की एक सामान्य अन्ना आंदोलन के कार्यकरता का ! अतः इस विवेचना के द्वारा किसी निष्कर्ष पर आने से पहले आप कृपया मेरी सीमाओ का भी ध्यान रखे !
बात आज से लगभग चार साल पहले की है जब अन्ना जी ५ अप्रैल २०११ को भ्रस्टाचार के खिलाफ जन लोकपाल की मांग को लेकर जंतर मंतर पर आमरण अनशन के लिए बैठे ! पूरा देश अन्ना जी के आवाहन पर उठ खड़ा हुआ ! लेकिन आज के परिपेक्ष में इस आंदोलन को पूरी तरह समझने से पहले यह समझना जरुरी है की इस आंदोलन को सक्रिय रूप से सपोर्ट करने वाले कौन लोग थे! इस बात को ध्यान में रखना बहुत जरुरी है !
१.पहले थे देश का वो पड़ा लिखा युवा वर्ग जो अन्ना आंदोलन से पहले किसी भी तरह की सक्रिय राजनीति से सम्बन्ध नही रखता था !अन्ना आंदोलन के द्वारा इस वर्ग में एक राजनीतिक समझ विकसित हुई साथ साथ ये आशा भी बंधी की वर्तमान स्तिथि में आंदोलन के द्वारा सकारात्मक परिवर्तन संभव है !
२.दूसरे स्थान पर थे वो लोग जो एक प्लेटफार्म की तलाश कर रहे थे जिनमे नेतागीरी के जन्मजात कीटाणु उपस्थित थे तथा जिन्हे अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने एवं अपनी एक पहचान विकसित करने के लिए एक प्लेटफार्म की आवश्यकता थी !
३. तीसरे और एक बड़े वर्ग में वो लोग थे जिनकी राजनीति कांग्रेस विरोधी थी जिन्हे कांग्रेस को कमजोर करने के लिए ये आंदोलन एक अच्छा मौका लगा !
तीसरे वर्ग के लोगों ने सोचा की वो इस आंदोलन की भ्रस्टाचार विरोधी छवि को बदलकर कांग्रेस विरोधी आंदोलन में बदल देंगे और राजनीतिक लाभ लेंगे ! ये वही लोग थे जिन्हे अपने अपने राजनीतिक स्वार्थ को पूरा करने के लिए आंदोलनों को भटकाने में महारत हासिल है !समय साक्षी है की जिस तरह इन्होने जयप्रकाश नारायण के समय बेरोजगारी हटाओ के नारे को कांग्रेस हटाओ और इंद्रा हटाओ के नारे में बदला और अपने राजनैतिक महत्व को कुछ हद तक साधने में कामयाब भी रहे ! परन्तु इस बार ये लोग अपनी मंशा में कामयाब नहीं रहे इसका बहुत बड़ा कारण यहाँ ये रहा की जयप्रकाश नारायण के समय कांग्रेस एकमात्र बड़ी पार्टी हुआ करती थी स्वभावतया सिर्फ कांग्रेस के खिलाफ उस समय एक लहर पैदा करना कोई मुश्किल काम नहीं था !परन्तु अन्ना आंदोलन के समय तक लोग लगभग सभी राजनैतिक पार्टियों को आजमा चुके थे अतयः लोगों को ये समझ आ चुका था की कोई सकारात्मक परिवर्तन सिर्फ़ राजनीतिक विकल्पों को बदलने से संभव नहीं है अपितु इसके लिए वर्तमान राजनीति में बदलाव करना पड़ेगा !
जब ये कांग्रेस विरोधी धड़ा इस आंदोलन को पूरी तरह अपने पक्ष में बदलने में कामयाब नहीं हुआ तथा इस आंदोलन से उसकी राजनीतिक जमीन भी खिसकने लगी तो इस आंदोलन को एकमत से सत्ताधारी और विपक्षी पार्टियों द्वारा कुचलने के प्रयास होने लगे !परन्तु इस प्रयास में ये धड़ा कामयाब नहीं हो पाया क्यूंकि इस आंदोलन के समर्थित लोगों की संख्या उनकी अपेक्षा से कहीं अधिक निकली !
फिर जैसा की सब लोग जानते हैं वैचारिक भिन्नता के कारण ये आंदोलन दो धड़ो में टूट गया !इनमे से एक धड़े ने अपनी मांगो को लेकर सक्रीय राजनीति मैं जाने का फैसला किया तथा दुसरे धड़े ने आंदोलनात्मक राजनीति के द्वारा जन दवाव के निर्माण से अपनी मांगों को आगे बढ़ाने का प्रयास करने का निर्णय किया !इस परिपेक्ष में दो नए बैनरों का जनम हुआ !
१ आम आदमी पार्टी
२ जनतंत्र मोर्चा
ये समय मेरे जैसे वॉलेंटियर्स के लिए कश्मकश भरा रहा ! एक तो राजनीति में अनुभव का अभाव और समझ की कमी तथा दूसरी ओर युवा अवस्था का एक नैसर्गिक जोश हमे कुछ निर्णय नहीं लेने दे रहा था ! मैंने अपने एक दो साथियों के साथ मंत्रणा की तथा ये निर्णय लिया गया की कुछ दिन परिस्थितयों को देखकर फिर निर्णय किया जाए !
कुछ दिन उठा पटक चलने के बाद जब हमने देखा बहुत से महत्वकांशी लोगों के द्वारा राजनीतिक पार्टी के बनते ही उसमे शामिल होने की होड सी लग गई है तो हमने किसी अनहोनी की सम्भावना के चलते उस परिपेक्ष में सक्रिय राजनीति से दूर रहते हुए थोड़ा और इन्तजार करने का निर्णय किया तथा गैर राजनीतिक रूप से आम आदमी पार्टी की अपेक्षा जनतंत्र मोर्चा के अंतर्गत जन लोकपाल की मुहीम को आगे बढ़ाने का निर्णय किया !
जो लोग आम आदमी पार्टी जैसी राजनीतिक पार्टियों में आंतरिक लोकतंत्र और स्वराज न होने का दावा करते हैं उन्हें यह जानकार आश्चर्य होगा की जनतंत्र मोर्चा जैसे जन आंदोलन के नेतृत्व का दावा करने वाले संगठन की स्थिति और भी खराब थी !इसका अंदाजा मुझे तब हुआ जब अन्ना जी के आंदोलन का पूर्णतया राजनैतिक रूप से इस्तेमाल हुआ ! किस लोकपाल को पास कराने हम निकले और कोनसा लोकपाल पास हुआ ! इसका कब और कैसे निर्णय हुआ की लोकपाल बिल के किस ड्राफ्ट पर अन्ना जी को सहमत होना है और कब आंदोलन समाप्त करना है इसके बारे में मेरे जैसे वॉलेंटियर्स की कोई जानकारी नहीं थी ! किसी भी निर्णय के बारे में हमारी राय तक नहीं पूछी गई ! जब लोकपाल बिल संसद में पेश हो रहा था तब मैं और मेरी टीम के कुछ साथी राजिस्थान के एक छोटे से जिले अलवर में अन्ना जी के समर्थन में धरना दे रहे थे ! मुझे अंत तक यही उम्मीद थी शायद अन्ना जी लोकपाल बिल के सन्दर्भ में अपने आंदोलन को समाप्त करने से पहले हमसे अपनी राय पूछेंगे ! पर जब सरकारी लोकपाल बिल संसद में पास हुआ और अन्ना जी ने अपनी सहमति उस बिल के समर्थन में जताई तब मेरा ये भ्रम जाता रहा ! साथियों के द्वारा विजय जुलूस निकालने का निर्णय किया गया पर मेरी मनः स्थिति विचित्र थी !मुझे समझ नहीं आया की खुश हुआ जाए की रोया जाए ! मैंने अपने साथियों से अपने मन की बात कही की मैं इस लोकपाल से खुश नहीं हूँ वो भी मेरी बात से सहमत दिखे ! मैं अपने मित्रों के प्रेम के कारण जुलूस में शामिल तो हुआ पर मैंने कोई सफलता के नारे नहीं लगाये मन में अजीब कश्मकश जारी थी !
इस नाटकीय घटनाक्रम से पहले आम आदमी पार्टी दिल्ली में २८ सीट जीत कर भारत की राष्ट्रीय राजनीति में उथल पुथल मचा चुकी थी ! मैंने मेरे साथियों के साथ मंत्रणा की तथा कहा की अन्ना जी के इस जनतंत्र मोर्चा के अंतर्गत हमे इस आंदोलन को समाप्तः करने के लिए राजनीतिक मोहोरों के रूप में इस्तेमाल किया गया है हमे इस झांसे में आये बिना इस लोकपाल बिल का विरोध करना चाहीये तथा जन लोकपाल की अपनी लड़ाई को जारी रखना चाइये ! मेरे कुछ साथियो ने मेरी बात का समर्थन किया !परन्तु मेरी बात पूर्णतया तब सही सिद्ध हुई जब श्री जर्नल बी .के सिंह और श्रीमती किरण बेदी ने लोकसभा चुनाव में खुलकर बीजेपी का समर्थन करने का ऐलान किया !उस वक्त में इस राजनीति के कुछ दांवपेंचों से वाकिफ हुआ जो की निम्नलिखित हैं -
१.किसी आंदोलन की हत्या करने के दो ही तरीके है ,पहला तो ताकत द्वारा दमनपूर्वक आंदोलन को कुचला जाना और दूसरा उस आंदोलन के लोगों को झूठी सफलता की चादर उड़ा कर एक झूठी सफलता की घोषणा करवा देना तथा आंदोलन के पुरोधाओं को झूठी सफलता के चने के झाड़ पर चढ़ा देना जिससे उनके अभिमान का पोषण होए और आंदोलनकारी अभीमान,सम्मान और गर्व के नशे में चूर अपने मूल लक्ष्य को भूल जाए ! अन्ना जी पर ये दूसरा प्रयोग किया गया !इसमे कुछ हद तक षड्यंत्रकारी सफल भी रहे पर इसका कारण अभीमान नहीं अपितु अन्ना जी की राजनीतिक अपरिपक्वता रही !पर आंदोलन के सामान्य वॉलेंटियर्स पर ये प्रयोग काफी हद तक सफल रहा !
२.दूसरा सबक मैंने ये सीखा की देशभक्ति , सच्चाई और कर्मठता किन्ही बड़े नामो की मोहताज नहीं ! किरण बेदी जी और जर्नल बी .के सिंह का महत्वकांशी हो बीजेपी में शामिल हो जाना इस बात का एक उम्दा सबूत है !
अब इस आंदोलन के दुसरे धड़े यानी आम आदमी पार्टी की इस आंदोलन में सहभागिता को मेरी दृस्टि के आधार पर, तथा ''आप" के साथ मेरे अनुभवों को आपको दिखाने का प्रयास मैंने यहाँ किया है ! पूरी स्थिति को समझने के लिए "आप" के उद्गम से लेकर अब तक के पूर्ण राजनीतिक घटनाक्रम को जानना यहाँ पर बहुत आवश्यक है !जब आम आदमी पार्टी बनी तो मैंने और मेरी पूरी टीम ने पार्टी के अंदरूनी राजनीतिक घटना क्रम से दूर रहते हुए पार्टी के विभिन्न जन कल्याण के इश्यूज पर बहार रहते हुए भी आप का समर्थन करने का फैसला किया तथा पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र पर नजर रखने का निर्णय किया !श्री अरविन्द केजरीवाल को राष्ट्रीय संजोयक चुना गया तथा आप पार्टी का संविधान लिखा गया !सम्विधान हम सभी को बहुत पसंद आया!संविधान के आधार पर आंतरिक लोकपाल,पि. ऐ. सी ,नेशनल एक्सिक्यूटिव ,नेशनल कौंसिल ,और इंटरनल लोकपाल का गठन किया गया !फिर राज्य ,जिला और ग्राम स्तर पर आप की इकाइयों का गठन होंने लगा !
हमे उम्मीद थी की जिस decentralization और पीपल enpovernment के उद्देश्यों को लेकर आप आगे बढ़ रही है वो अपने मूल सिधान्तो पर कुछ साल तो अडिग रहेगी इसी के साथ ये उम्मीद भी थी ये पार्टी और पार्टियों की तरह किसी भी तरह के गलत माध्यमो और राजनैतिक पार्टियों के स्वार्थ लोलुपता और compromising नेचर आदि हथकंडो से दूर रहेगी !परन्तु पार्टी बनते ही धीरे धीरे राजनैतिक पार्टियो की सारी कमिया इस पार्टी को भी प्रभावित करने लगी !ईमानदारी की जगह strategy ने ले ली !
decentralization का दावा करने वाली पार्टी का पहला स्वार्थ गत निर्णय यह था आप ने पहला चुनाव देश की बजाय दिल्ली में लड़ने का फैसला लिया!
मेरी दृस्टि में आप के इस फैसले के पीछे स्ट्रैटिजी यह थी की दिल्ली में अगर हम जीतते हैं तो लोगों के बीच हम शक्ति प्रदर्शित करने में हम कामयाब रहेंगे और चुकी शक्तिमान का समर्थन करने में एक आम नागरिक के अभिमान को बल मिलता है और गर्व की अनुभूति होती है इस प्रकार हम अधिक से अधिक लोगों को अपनी पार्टी की तरफ आकर्षित करने में कामयाब रहेंगे और देश की राष्ट्रीय राजनीति में जल्द ही बड़ी घुसपैठ करने में कामयाब होंगे ! अब यहाँ पे ये प्रश्न उठता है की क्या ये वहीं नयी प्रकार की राजनीति है जिसका दावा आम आदमी पार्टी कर रही थी या फिर जल्दी सफलता प्राप्त करने के नुस्खे आप में अजमाए जा रहे थे !
दूसरा स्वार्थगत निर्णय आप का यह था की पहले दिल्ही विधानसभा चुनाव को जीतने के लिए आपने देश की राष्ट्रीय राजनीति के प्रश्नो से बचने का प्रयत्न किया ! आपने श्री नरेन्द्र मोदी से सीधी टक्कर लेने से बचने का प्रयास किया क्यूंकि इससे आपको दिल्ली चुनावो में नुक्सान का खतरा रहा होगा !इसका नुक्सान ये हुआ की आपने अन्ना आंदोलन के दौरान देश में उत्पन हुई भ्रस्टाचार के विरुदध ऊर्जा को पूरे देश में प्रसारित होने का मौका छीन लिया और उस ऊर्जा को दिल्ली में सेंट्रलाइज्ड कर दिया और नरेंद्र मोदी और बीजेपी को पोलिटिकल स्पेस प्रोवाइड करा दिया ! जिससे बीजेपी भारत की राजनीती में कांग्रेस मुक्त भारत नारे को फ़ैलाने और अन्ना आंदोलन से उपजे भ्रस्टाचार मुक्त भारत के अभियान को पीछे धकेलने में कामयाब रही !अगर आप ऐसा नहीं करती तो २०१५ के लोकसभा चुनावो में आप की इतनी बड़ी हार और बीजेपी की इतनी बड़ी जीत नहीं हो सकती थी क्यूंकि जब आम आदमी पार्टी ने राष्ट्रीय राजनीति में आने का फैसला किया तब तक बहुत देर हो चुकी थी बीजेपी अपनी मंशा में कामयाब हो चुकी थी ! किसी विकल्प के नहीं रहते भारत की जनता के मानस को झूठे प्रचार और विज्ञापनों द्वारा बीजेपी बरगलाने में कामयाब रही और एक सबल विपक्ष के अभाव में भारत की जनता ने बीजेपी को चुनने का निर्णय किया !मैंने और हमारी टीम ने इस वक़्त हथियार न डालते हुए इन बड़ी ताकतो से लड़ने का प्रयास किया तथा राजस्थान के २०१४ के विधान सभा चुनावो में नोटा (नो ऑप्शन) वोट का प्रचार कर बीजेपी को कुछ हद तक रोकने का प्रयास किया परन्तु हमारे प्रयास सिर्फ इतने ही थे जितना की "ऊट के मूह में जीरा" !
इसी के साथ आम आदमी पार्टी ने पहले दिल्ली विधानसभा चुनावो में भी स्वार्थ को ईमानदारी से ऊपर रखा ! टिकिट बटवारे के समय भी आम आदमी पार्टी में कुछ स्थानो पर ईमानदारी के ऊपर पॉपुलर्टी और जिताऊ कैंडिडेट्स को ज्यादा महत्व दिया गया ! ज्यादातर निर्णय पि.ऐ.सी में लिए गए तथा नेशनल एक्सिक्यूटिव ,नेशनल कौंसिल और वॉलेंटियर्स की राय को जयादा महत्त्व नहीं दिया गया !
परन्तु इन सभी गलतियों और महत्वकांशा के अंतर्गत लिए गए निर्णयों के चलते हुए भी आप उस वक्त तक मेरी फेवरट पार्टियों में से एक थी उसके कई कारण थे मुख्यतः चंदे में पारदर्शिता , इंटरनल लोकपाल , सभी विचारधारा के लोगों का अद्भुत समागम , कर्मठ और बुद्धिमान युवा कार्यकर्ता ,नए विचार ,नई ऊर्जा और आंदोलन के साथियो के चलते इस पार्टी से भावनात्मक जुड़ाव आदि इस पार्टी से मेरे लगाव के प्रमुख कारण थे !
इन सभी अच्छाइयों के चलते आप को २८ सीट दिल्ही विधानसभा के पहले चुनावो में मिली ! उस समय हम जनतंत्र मोर्चा की असफलता से निराश थे और एक सही दिशा में आंदोलन को आगे बढ़ाने को तत्पर थे ! आप की इस सफलता ने हमे भी एक नयी उम्मीद बंधा दी ! हममे यह उम्मीद जगी की आप को वैकल्पिक राजनीति के एक हथियार के रूप में इस्तिमाल किया जा सकता है ! यह भी हमे ज्ञात हो चुका था की आप की सफलता से घबराकर और आंदोलन को खत्म करने के उद्देश्य से ही लोकपाल क़ानून को संसद में पास किया गया है जो की एक राजनैतिक चाल है ! खैर हममे से कुछ लोगो ने आप के अंदर जाकर आप में आंतरिक लोकतंत्र और स्वराज को मजबूती प्रदान करने तथा इस पार्टी को स्वार्थ लोलुप लोगो से बचाने का निर्णय किया ताकि सही वक़्त पर इसे वैकल्पिक राजनीति का एक हथियार बनाया जा सके !पर उस वक़्त तक श्री अरविन्द केजरीवाल ने कांग्रेस के बाहरी सपोर्ट से सरकार बना ली थी और मुख्यमंत्री पद की शपथ भी ले ली थी !जब हमने पार्टी की जिला कार्यकारणी में शामिल होने तथा अपनी बात रखने की कोशिश की तब हमे पता लगा की हमने शायद बहुत देर कर दी थी !पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र की भारी कमी थी !सारे निर्णय दिल्ली से होने लगे थे ,कॉमन वॉलेंटियर्स की जगह जिला सयोंजक , सचिव , मीडिआ प्रभारी आदि पदो ने ले ली थी ! अब वॉलेंटियर्स अपने देश सेवा और भ्रस्टाचार विरोधी कामो के लिए आम आदमी पार्टी का इस्तेमाल नहीं कर सकते थे जैसा की इंडिया अगेंस्ट करप्शन के समय में होता था बल्कि पार्टी आदेश करती थी और वॉलेंटियर्स को आदेशो का पालन करना होता था !सारे स्वार्थी लोगों में आप ज्वाइन करने की एक होड सी मच गई थी !बहुत सारे अच्छे लोग भी थे परन्तु ये बात पक्की थी की हमारे लिए इस पार्टी की निर्णय प्रक्रिया में शामिल होने और इस पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र और आंतरिक स्वराज को मजबूत करने का अब कोई तरिका नहीं था !क्यूंकि जो लोग पदो में बैठे हुए थे वो अपने हाथ की पावर को decentralized करने को ही तैयार नहीं थे ! श्री अरविन्द केजरीवाल की लिखी किताब स्वराज के ज्ञान को वो अपनी ही पार्टी के अंदर लागू करने में ही असमर्थ रहे ! मुझे याद आ रहा था केजरीवाल की किताब स्वराज के मुख्य पृष्ठ पर बना वो कार्टून जिसमे एक आम आदमी एक नेता से यह कह रहा है की मुझे विकास नहीं सत्ता में भागीदारी चाहिए विकास मैं खुद कर लूंगा !फिर भी उस वक़्त की परिस्थिति को देखते हुए हमने उस समय जयादा विरोध न करने का फैसला किया !क्यूंकि हमे पता था की अभी अगर हमने आवाज बुलंद करी तो हमे स्वार्थी और मौकापरस्त न जाने कैसे कैसे विशेषणों से सम्बोधित किया जाएगा तथा हमारे पास सत्ता के मद में चूर इन लोगों को समझाने का कोई उपाये भी नहीं दिख रहा था !मजबूरीवश हमने उस वक़्त आप की जिला वॉलेंटियर्स comette में शामिल होने का इरादा छोड़े दिया और कुछ और इन्तजार करने तथा अपनी लड़ाई व्यक्ति गत और अपनी टीम के साथ जारी रखने का निर्णय किया !
फिर उसके बाद राजनैतिक घटनाक्रम तेजी से बदला !केजरीवाल का इस्तीफा और लोकसभा चुनाव में ज्यादा से जयादा सीटो पर चुनाव लड़ने का फैसला हुआ !मेरे विचार में ये दोनों ही फैसले सही थे !
इस्तीफे का फैसला इसलिए सही था क्यूंकि २८ सीटो के साथ और आगे बढ़ने की संभावना मुझे भी अब नहीं दिख रही थी इस्तीफा देना ही एकमात्र विकल्प था !
ज्यादा से ज्यादा सीटो पर चुनाव लड़ने का फैसला इसलिए सही था क्यूंकि एक तो इससे देश के सभी झुजारु लोगो को ये चुनाव एक प्लेटफॉर्म पर लाकर खड़ा कर सकता था जिससे आंदोलन की शक्ति बढ़ती तथा और भी नए क्रांतिकारी सोच रखने वाले आंदोलनकारी एक प्लेटफॉर्म पर इकट्ठा होंगे जो की power decentralization के लिए बहुत ही जरुरी बात थी साथ ही मुझे ये भी पता था आम आदमी पार्टी इस चुनाव में जयादा सीट नहीं जीत पाएगी क्युकी एक तो राष्ट्रीय राजनीति में आने में काफी देर कर दी है और लोग बीजेपी को वोट देने का मन बना चुके हैं!परन्तु लोकसभा चुनाव में इस समय हार का एक सकारात्मक परिणाम ये होगा की स्वार्थी और ईमानदार वॉलंटियर्स के बीच छटनी हो जायेगी जिससे ईमानदार लोगों की बात शायद इस पार्टी में सुनी जाए और हम वैकल्पिक राजनीति की दिशा में इस पार्टी को ले जा सके ! ये सब सोचते हुए हमने एक निश्चित दूरी रखते हुए पार्टी से थोड़ा बहुत जुड़ाव रखने साथ ही साथ लोकसभा चुनाव २०१४ में आप का प्रचार न करने परन्तु आप को ही वोट देने का निर्णय किया !
प्रकृति अपना संतुलन खुद बना लेती है ! लोकसभा चुनाव के परिणामो के बाद जो तस्वीर पेश हुई वो हमे पहले से ही मालुम थी !असल में आप की हार इतनी बड़ी नहीं थी जितना की स्वार्थी लोगो के पलायन ने उसे बना दिया !एकदम से भीड़ हटने लगी !जो लोग तारीफों के पुल बांधा करते थे वो ही लोग उपहास करने लगे !ये सब हमे पहले से ही मालूम था !लोगों को लग रहा था आप हार गई पर जिसमे थोड़ी सी भी दूर दृस्टि थी वो वो ये देख सकता था की ये वास्तव में कोई हार नहीं थी !४०० सीटो पर लोकसभा चुनाव लड़ने से बहुत फायदे हुए थे जिनमे मुख्यतः पंजाब में आप की मजबूत पकड़ बनना ,मेधा पाठकर,सोनी सोढ़ी , मीरा सान्याल ,आशीष खेतान तथा और भी बहुत से नए चेहरों का इस पार्टी से जुड़ाव ,१ करोड़ से अधिक लोगों का जन समर्थन जैसे कई सकारात्मक परिणाम इस पार्टी को मिले थे जिससे वैकल्पिक राजनीति में आम आदमी पार्टी का दावा और भी मजबूत हुआ था ! हां एक दुष्परिणाम जरूर हुआ था ,दिल्ली में आम आदमी पार्टी की थोड़ी जमीन खिसकी थी ऐसा भी हो सकता था की अन्य पार्टियां अनफेयर मीन्स का इस्तेमाल करके पैसे और बिकाऊ मीडिया की कुप्रचार की ताकत के दम पर आम आदमी पार्टी और केजरीवाल की छवि को काफी नुक्सान कर सकती थी !वो विधायक जिन्हे जिताऊ समझकर आप ने पहले टिकट दे दिया था उनकी महत्वकांशा अब सामने आने लगी थी !वो अब आम आदमी पार्टी को छोड़कर बीजेपी में जाने को तत्पर दिखाई देने लगे थे !हो सकता था रातो रात सफलता प्राप्त करने वाली पार्टी के पुरोधा श्री अरविन्द केजरीवाल जी को , चुनाव के समय जब उनसे पूछा जाता था की, अगर आप नहीं जीते तो क्या होगा, तो वो अक्सर कहा करते थे की ये हमको थोड़ी सोचना है ये तो आपको सोचना है की अगर हम नहीं जीते तो आपके बच्चों के भविष्य का क्या होगा, को अपने भविष्य का डर सताने लगा था !उनको पता था की अगर विधायक टूटते है तो जनता को जवाव देना मुश्किल हो जाएगा और व्यवस्था का हिस्सा बनकर व्यवस्था में सुधार करने के उनके इस राजनीतिक प्रयोग पर ही प्रश्न चिन्न लग सकता है !ये बात महत्वकांशिओं को टिकट देने से पहले कौन सोचता है शायद ईमानदारी के पुजारी और त्याग के देवता श्री अरविन्द केजरीवाल ने भी नहीं सोची होगी !हार बुद्धिमान लोगों के लिए आइना होती है जिसमे वो अपनी गलतियों को देख लेते हैं !ऐसे वक़्त में करना ये था की अपनी गलतियों को जानकार वापिस अपने मूल सिधान्तो पर लौट आना और आत्मावलोकन करना तथा जो महत्वकांशी लोग अलग होते हैं उन्हें अलग होने देना तथा अपने नए निःस्वाथ साथियो की पहचान करना एवं उन्हें एकत्रित करना तथा पहले से भी अधिक जोश के साथ पुनः आंदोलन में कूद पड़ना, परन्तु हुआ एकदम इसका उल्टा ! आम आदमी पार्टी अपने मूल सिद्धांतों से और भी अधिक भटक गई !
लोग उपहास कर रहे थे परन्तु हमारे अंदर तो एक नयी ऊर्जा का संचार हुआ था !इस पार्टी को वैकल्पिक राजनीति का एक नया हथियार कैसे बनाया जाए इस पर हमारा एक नया मंथन चल ही रहा था की कुछ घटनाओ ने हमारे सारे सपनो को तितर बितर कर दिया!
पता लगा की आप ने कांग्रेस से समर्थन माँगा है सरकार बनाने के लिए तथा राज्यपाल महोदय को पत्र लिखकर जताया की हम सरकार बनाने की सम्भावना तलाश रहे हैं !फिर योगेन्द्र यादव का इस्तीफा और केजरीवाल की हिटलरशाही के खिलाफ पत्र उसके बाद मनीष सिसोदिया का नवीन जय हिन्द के समर्थन में योगेन्द्र यादव के खिलाफ बयानबाजी एवं शांतिभूषण और केजरीवाल के बीच मनभेद की खबरे इतियादी !
समझने के लिए काफी था की ये आम आदमी पार्टी के पुरोधा अपनी हार को पचा नहीं पाये हैं !हमारे जैसे साधारण बुध्दि के कार्यकर्ता भी जिस सत्य को देख पा रहे थे ,बड़े बड़े सरकारी पदों पर रहने वाले और अपने आप को बुध्दिजीवी कहने वाले आम आदमी पार्टी के बड़े नेता अपनी घबराहट और राजनीतिक स्वार्थ लोलुपता से भरी दृस्टि से अपनी इस तथाकथित हार के पार्टी की अंदरूनी राजनीति में होने वाले सकारात्मक परिणामो को देख पाने में असमर्थ थे! और फिर अपने राजनैतिक करियर को बनाये रखने के लिए जिस प्रकार से सारे मूल्यों को ताक पे रख के २०१५ के विधानसभा चुनाव लड़े गए उससे न सिर्फ भ्रस्टाचार विरोधी इस आंदोलन को क्षति हुई बल्कि सिर्फ महत्वकांशी लोगों का उदय हुआ !पूरी तरह से decentralization के मुद्दे को भूलकर एक व्यक्ति की लोकप्रियता को भुनाने के लिए चुनाव में सिर्फ उसी के नाम के नारे लगवाए गए तथा चुनाव जीतने के लिए हर प्रकार के compromises किये गए !
एक बार श्री मनीष सिसोदिया को ये जुमला कहते सुना था की "हम राजनीति को बदलने आये हैं !उनके अनुसार "आप "जीते या हारे पर आप की ईमानदार राजनीति से डरकर मुख्य धड़े की पार्टियां आप का अनुसरण करेंगी और वैकल्पिक राजनीति का जनम होगा" !परन्तु २०१५ के दिल्ली विधानसभा चुनाव में "पाँचसाल केजरीवाल ,पाँचसाल केजरीवाल "के नारे और "हर हर मोदी ,घर घर मोदी "के नारो में एक समानता ये लगी की दोनों ही नारे व्यक्तिवादी सोच का नतीजा थे !इससे एक बात सुस्पष्ट हो गई थी की दूसरी पार्टियों का तो पता नहीं परन्तु हम दूसरी पार्टियो से सीखने लगे थे !
इन सभी घटनाक्रम और आम आदमी पार्टी के प्रचार के तरीको को देखकर प्रसिद राजनीती शास्त्री श्री पंडित दीनदयाल उपाध्याय के उन शब्दों की याद आने लगी थी जिसमे उन्होंने एक सही राजनीति का अर्थ बताया था" लोकमत परिष्कार "न की लोकलुभावन वादे करके चुनाव जीतने के लिए लोकमत का अंधानुकरण करना ,चाहे आने वाले भविष्य में सम्पूर्ण राष्ट्र को उसके दुष्परिणामों को ही क्यूँना भुगतना पड़े !
आम आदमी पार्टी के पुरोधाओं को ये समझना होगा की लोकमत के अंधानुकरण से तथा जनता को लालच देकर सत्ता प्राप्त करना शायद बहुत आसान है परन्तु राजनीति को बदलना बहुत मुश्किल है क्यूंकि राजनीति को बदलने के लिए आपको लोगों की मानसिकता में परिवर्तन लाना पड़ता है, लोकमत का निर्माण करना होता है , जो की सतत संघर्ष से ही संभव है न की रातो रात नारे लगा कर चुनाव जीतने से कोई परिवर्तन होने वाला है !आज भी लोकसत्ता जैसी कई पार्टिया है जो सतत संघर्ष के चलते हुए भी एक या दो सीट से आगे नहीं बाद पाई हैं परन्तु वैकल्पिक राजनीति की दिशा में उनका प्रयास सहरानीय है क्यूंकि बहुत से लोगों की राजनीतिक समझ को उन्होंने अपने सतत संघर्ष के दवारा परिपकव किया है !
इन सभी बातो को समझते हुए भी मैंने २०१५ के विधानसभा चुनावो में आप का विरोध नहीं किया क्यूंकि मैं एक विश्लेषक के तौर पर लोकपाल बिल और स्वराज बिल को प्रैक्टिकली इम्प्लीमेंट होते हुए देखना चाहता था !
अब चुकी २०१५ के दिल्ही विधानसभा चुनावो में आप को ६७ सीट मिली हैं इस तथाकथित सफलता का विश्लेषण बहुत जरुरी है तथा इस जीत के बाद के घटनाक्रम को पार्टी के अंदरुनी लोकतंत्र के परिपेक्ष में समझना और विश्लेषण करना भी मैं बहुत आवश्यक समझता हूँ !
सबसे पहले तो किसी भी बड़ी जीत का मतलब ये नहीं समझना चाइए की इससे देश की वर्तमान राजनीति में कोई बहुत बड़ा क्रांतिकारी बदलाव होने जा रहा है इसके लिए जीत के साथ साथ ही और भी परिपेक्ष में इस जीत को देखा जाना बहुत जरुरी है ! चुकी इस जीत के लिए आम आदमी पार्टी ने अपनी मूल भावना से खिलवाड़ किया है तथा अपनी जीत की के लिए सतत संघर्ष की अपेक्षा उकसाने की राजनीति करी है,विज्ञापनों के द्वारा लोगो के जनमानस पर अपनी छाप छोड़कर लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास किया है !ऐसी राजनीति तो कांग्रेस और बीजेपी सालो पहले से करती आई हैं और उन्होंने बहुत आपार सफलता भी पाई है !परन्तु उससे देश के जनमानस की चेतना में बहुत वृद्धि हुई है ये बात सरासर गलत है ! परन्तु ये पार्टी जन लोकपाल और स्वराज जैसे बिलों को पास करने और देश में लोकतंत्र को एक नए आयाम तक पहुचाने के सपने को लेकर आगे बढ़ी है मुझे लगता है की ये बड़ी जीत इस पार्टी के लिए हानिकारक सिद्ध होगी क्युकि स्वराज और जन लोकपाल बिल की सफलती सिर्फ उनको पास कर देने पर ही नहीं जन भागीदारी पर भी बहुत कुछ डिपेंडेंट है ! परन्तु चुकी बिना जन संघर्ष के पाई गयी ये सफलता जन चेतना में कोई बड़ा बदलाव नहीं कर पाई है अपितु इस राजनीति से जन चेतना में सिर्फ गिरावट ही आई है ऐसी स्थिति में दिल्ली का सामान्य जन इस नवीन प्रयोग को स्वीकार भी कर पायेगा भी की नहीं ये कहना भी मुश्किल है ! ऐसी स्थिति में स्वराज और लोकतंत्र के इस नयी पहल, जो जनता की सक्रिय भागीदारी को सीधे उसके हाथ में सत्ता की शक्ति को देकर अपेक्षित करती है , की विफलता वैकल्पिक राजनीति के इस नए प्रयोग की आत्मा को ही हिला कर रख सकती है! ऐसी स्थिति में इस आंदोलन को बचाए रखने के लिए सक्रिय राजनीति को छोड़कर फिर से आंदोलन में कूदने के आलावा कोई और विकल्प नहीं रह जाएगा ! परन्तु आम आदमी पार्टी के सत्ता लोलुप नेताओ से ये अपेक्षा करनी अब बहुत बड़ी बेमानी है !अतः इस पार्टी का दो धड़ो में टूट जाना अब अवश्यम्भावी है जिसकी की शुरुवात अरविन्द केजरीवाल खेमे और योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषन खेमे के अलग हो जाने से हो चुकी है !
अब हाल ही के घटना क्रम पर नज़र डालते हैं जिसमे श्री योगेन्द्र यादव और श्री प्रशांत भूषन को गैर लोकतान्त्रिक तरीके से पहले पोलिटिकल अफेयर कमिटी और फिर नेशनल एग्जीक्यूटिव और नेशनल कौंसिल से निकाला गया !उसके बाद श्री अरविंद केजरीवाल जी के नेशनल कौंसिल मीटिंग के भाषण का edited version लांच हुआ जिसमे उन्होंने बताया की किस प्रकार प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव ने २०१५ क विधानसभा चुनावो में आप को हराने की कोशिश की तथा वो पार्टी विरोधी गतिविधिओं में संलिप्त पाये गए !
एक बार मैंने जब आम आदमी पार्टी को बने हुए जयादा दिन नहीं हुए थे तब अरविन्द केजरीवाल जी को जुमला कहते हुए सुना था की "पार्टी इम्पोर्टेन्ट नहीं है देश इम्पोर्टेन्ट है !पार्टी तो सिर्फ एक जरिया है देश की राजनीति में परिवर्तन लाने का "!अब ये बात शायद किसी ने नहीं उठाई की योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषन जो बाते उठा रहे हैं वो पार्टी विरोधी हो सकती हैं , लेकिन क्या वो देश विरोधी हैं ?शायद नहीं !फिर उन्हें पार्टी से क्यों निकला गया ?शायद इसलिए क्यूंकि अब आम आदमी पार्टी में बैठे लोगों को जीतना जयादा इम्पोर्टेन्ट मालुम पड़ता है , देश ,समाज ,नैतिकता ,आत्मा ,आदर्श ,सिद्धांत ये सब बेकार की बाते मालुम होती हैं!शायद अब देश का हित और पार्टी की राजनितिक सफलता एक दुसरे के पूरक नहीं बल्कि एक दूसरे के विरोधी जान पड़ने लगे हैं !
साथ ही जनलोकपाल के आंदोलन से उपजी और रातोरात दिल्ली की विधानसभा पर काबिज होने वाली इस पार्टी ने अपने आंतरिक लोकपाल का जो हश्र किया वो किसी भी समझदार आदमी को यह समझने के लिए काफी है की ये पार्टी अब अपने मूलभूत सिधान्तो से पूरी तरह भटक चुकी है !
अब चुकी ये पार्टी दो धड़ो में टूट चुकी है !मैं अपने अनुभव से कह सकता हूं की राजनीति को जड़ से बदल देने का दावा करने वाली ये पार्टी, जो वैकल्पिक राजनीति का दावा करती थी, इसके सभी ईमानदार क्रांतिकरी युवा वॉलेंटियर्स और साथ में विदेशो में आप के समर्थक भारतीय मूल के लोग भी धीरे - धीरे ये समझ रहे होगे की ये पार्टी अब वैकल्पिक राजनीति का हथियार बनने की अपेक्षा विकल्प की राजनीति का ही हिस्सा बनती जा रही है ! ऐसी स्थिति में सभी जागरूक लोग धीरे- धीरे योगेन्द्र और प्रशांत भूषन के साथ खड़े होने लगेंगे ! इसका सबसे विकट परिणाम ये होगा की विदेश में रहने वाले भारतीय ,जो इस पार्टी के डोनेशन का बहुत बड़ा सोर्स हैं, आप को डोनेशन देना बंद कर देंगे ! ऐसी स्थिति में पूरे देश में चुंनाव लडने के लिए ईमानदारी से चंदा जुटाना आप के लिए बहुत मुश्किल होगा ! परंतु मुझे लगता है सत्ता लोलुपता के वशीभूत आप के नेता ऐसे वक़्त में अपनी महत्व की आकांशा को सिद्ध करने के लिए अनफेयर मीन्स से चंदा जुटाने में भी शायद गुरेज नहीं करेंगे !परिणामतः आने वाला समय इस पार्टी में थोड़ी सी बची नैतिकता की अर्थी को भी शमशानघाट पहुँचाने वाला सिद्ध होगा !
ऐसी स्थिति में इस आंदोलन की आत्मा को बचाए रखने का सारा दारोमदार योगेन्द्र और प्रशांत भूषन धड़े का होगा !पर एक बात मुझे स्पष्ट दिखाई देने लगी है की इस आंदोलन के ईमानदार वॉलेंटियर्स को इस आंदोलन की आत्मा को बचाए रखने के लिए कांग्रेस ,बीजेपी के साथ अब एक नए दुश्मन से भी सामना करना पड़ सकता है , और वो नया दुश्मन है "आम आदमी पार्टी" या फिर यूं कहे की" अरविन्द आदमी पार्टी "!
वैसे में प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव की सत्यता और मंशा को अपने घर बैठे बैठे प्रामाणिक नहीं कर सकता परन्तु एक बात स्पष्ट है की अरविन्द केजरीवाल धड़े से अब मुझे कोई अपेक्षा नहीं है जबकि विरोधी धड़े से कुछ आशा जरूर है क्यूंकि उन्होने अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षाओं को छोड़कर सत्य के साथ और अन्याय के खिलाफ खड़े होने की हिम्मत तो कम से कम की ही है!
अब तो मुझे बस इन्तजार है १४ अप्रैल को होने वाली मीटिंग का जिसे" स्वराज संवाद" नाम दिया जा रहा है ! चुकी में इस आंदोलन का शुरू से हिस्सा रह चूका हूँ अतः में साक्षी हूँ उस जूनून का जो अन्ना आंदोलन के वक़्त दिखाई पड़ा था , में साक्षी हूँ उस युवा जोश का जो देश की राजनीति को बदल कर रख देने का साहस रखता था !इसी के साथ मैंने "आम आदमी जिन्दाबाद" के नारे को "आम आदमी पार्टी जिंदाबाद "के नारे में बदलते देखा है" ,मैंने देखा है" मैं हूँ अन्ना "और "मैं हूँ आम आदमी "की टोपी को" मैं हूँ अरविन्द केजरीवाल"की टोपी में बदलते हुए ! अब बस देखना यह है की इस आंदोलन के ईमानदार वॉलंटियर्स में अभी भी वही जोश वही जज्बा दिखाई देता है या फिर इस राजनीति की रस मलाई ने स्वराज की भूख को मार तो नहीं दिया! कुछ भी हो पर मै भी जरूर रहना चाहता हूँ इस ऐतहासिक संघर्ष का गवाह ! अतः मैं भी आ रहा हूँ इस स्वराज संवाद में और आशा करता हूं आप सबसे अब वही मुलाक़ात होगी क्युकी हम सभी जानते हैं की हमारी लड़ाई अभी थमी नहीं है लड़ाई अभी जारी है ,मेरे दोस्तों, लड़ाई अभी जारी है !
रुक जाना नहीं तू कभी हार के
कांटो पे चलके मिलेंगे साये बहार के
written by
yash sharma
(volunteer since anna movement up to now ) -to be continued-------